लेखनी कहानी -25-Nov-2022 कागज की नाव
बिल्कुल सही पकड़े हैं जी । ये जिंदगी एक कागज की नाव ही तो है जी । कल का ठिकाना नहीं और चिंता सात जन्मों की करते हैं जी । कागज की नाव से याद आया कि बचपन में हम भी कागज की नाव बनाया करते थे । तब बरसात बहुत होती थी । विद्यालय के पास ही एक बड़ा नाला बहता था , उसी में उस नाव को तैराया करते थे । नाव के साथ साथ हम भी चलते थे । और मन ! वह तो पता नहीं कहां कहां की सैर कर आता था ।
पर आजकल ना तो बरसात होती है और ना ही कागज की नाव बनती हैं । अगर कोई कागज की नाव बना भी ले तो तथाकथित पर्यावरणवादी उस पर पिल पड़ेंगे कि कागज की नाव बनाकर पर्यावरण का कितना नुकसान कर दिया है । वह बेचारा समाज, प्रकृति और देश का दुश्मन घोषित कर दिया जायेगा और बिकी हुई मीडिया उसके मुंह में माइक घुसेड़ देगी । इसलिए आजकल कोई हिम्मत ही नहीं करता है कागज की नाव बनाने की ।
वैसे भी कागज की नाव बनाकर कोई क्या कर लेगा ? चलो मान लिया कि पर्यावरणवादियों और मीडिया की परवाह किये बिना कोई दुस्साहसी व्यक्ति कागज की नाव बना भी लेगा तो उसे तैरायेगा कहां ? क्या यमुना में ? कैसी बातें करते हो जी ? क्या यमुना मैया का पानी ऐसा रह गया है कि जिसमें नाव चलाई जा सके ? जो लोग बड़ी बड़ी बातें करके दिल्ली की कुर्सी पर बिराजे थे कि हम ये कर देंगें जी और हम वो कर देंगे जी उन्होंने यमुना के लिए क्या किया है जी ? पूरे 9 साल हो गये हैं कुर्सी पर बिराजे हुए मगर जेल में मसाज कराने के अलावा और कुछ किया है क्या जी ?
एक बात तो है , यमुना का पानी इस योग्य तो है नहीं कि उसे पिया जा सके । लेकिन पीने को कुछ तो चाहिए दिल्ली वालों को । अब आप ये मत कह देना कि खून का घूंट तो है पीने को । बेचारे, यही तो कर रहे हैं । लेकिन क्रांतिकारी राजनीति करने वालों ने एक बहुत बड़ा क्रांतिकारी काम कर दिया । दिल्ली की जनता को जन्नत में ले जाकर बैठा दिया । इसके लिए "हैंडसम" मंत्री जी एक खास योजना लेकर आये । उन्होंने पानी का विकल्प शराब घोषित कर दिया और गली गली में शराब की दुकानें खुलवा दीं । इसे कहते हैं नई तरह की राजनीति जी । आम के आम और गुठलियों के दाम । दिल्ली वालों को स्वर्ग की सैर कराने के लिए उन्होंने शराब पानी से भी सस्ती कर दी । शराब पानी से सस्ती होने से गरीबों का पैसा भी बच रहा है और शराब के ठेके छोड़ने से "आप" का खजाना भी भर रहा है । कट्टर ईमानदारी इसी को तो कहते हैं जी । अब लोग ना केवल शराब पी रहे हैं जी, अब तो शराब से नहा रहे हैं जी । इससे बढिया जन्नत की सैर और क्या होगी जी ।
अब ये मत कह देना कि कागज की नाव से सवारी नहीं की जा सकती है इसलिए इन्होंने यमुना की सफाई नहीं करवाई जी । दरअसल ये लोग अपनी कागज की नाव पानी में तैराना नहीं बल्कि हवा में उड़ाना जानते हैं । तभी तो पिछले 10 सालों से ये लोग हवा में उड़ रहे हैं और अपने वादों को भी हवा में उड़ा रहे हैं । अब दिल्ली वाले इतने विद्वान, बुद्धिमान और महान लोग हैं कि उन्हें ऐसे ही "कट्टर ईमानदार" लोग पसंद हैं तो कोई क्या कर सकता है ? कभी कभी ज्यादा ज्ञानी लोगों के साथ ऐसे हादसे हो जाते हैं । भगवान दिल्ली वालों पर मेहरबानी बनाए रखना । उन्होंने तो अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने में कोई कसर नहीं छोड़ी है ।
कहते हैं कि खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है । दिल्ली की "खुशहाली" के किस्से जब अमरीका में सुनाये जाने लगे और न्यूयार्क टाइम्स में लेख छपने लगे तो कनाडा वाले कैसे पीछे रहते ? आजकल पंजाब कनाडा से ही तो चलता है जी । सारे खालिस्तानी वहीं बैठे हैं जी । तो कनाड़ा वाले खालिस्तानियों ने ठान लिया कि उनको भी दिल्ली जैसा ही पंजाब चाहिए तो उन्होंने किसानों के वेश में दिल्ली की सड़कों पर खालिस्तानियों को छोड़ दिया । दिल्ली की सड़कों पर जो तांडव किया उन्होंने , देखकर मजा आ गया ।
अब दिल्ली वाले तो शिकायत भी नहीं कर सकते थे । आखिर बीज तो उन्होंने ही बोया था तो और क्या करते ? अपनी झेंप मिटाने के लिए वे उन खालिस्तानियों को अखरोट का हलवा खिलाने लगे और शराब की "यमुना" बहाने लगे । गंगा उनके नसीब में नहीं है जी ।
तथाकथित किसानों से याद आया कि देश में "सुप्रीम फ्रॉड" नाम की भी एक संस्था है । वह कभी खुद अपने गिरेबान में नहीं झांकती मगर बाकी सब पर उंगली उठाती रहती है । कागज की नाव की सवारी करने वाले ऐसा ही करते हैं । उन्हें खुद की यात्रा का पता नहीं होता मगर दूसरों की यात्राओं पर टीका टिप्पणी करते रहते हैं । दूसरों को ज्ञान पिलाने में क्या जाता है ? एक ऑर्डर ही तो करना पड़ता है । या फिर ऑर्डर करने में जोर भी आये तो कोई "गैर जरूरी" टिप्पणी करके सुर्खियों में तो आया ही जा सकता है । फिर उस गैर जरूरी टिप्पणी के कारण किसी नूपुर का गला रेता जाये तो इससे "सुप्रीम फ्रॉड" को क्या फर्क पड़ता है ?
सुना है आजकल उन्हें "चुनाव आयोग" में बहुत रुचि होने लगी है । सही तो है । जब वे पहले ही तय कर देते हैं कि किसका बेटा , बेटी , पोता , पोती पैदा होते ही "सुप्रीम फ्रॉड" करेगा तो वे "चुनाव आयोग" में भी ऐसा ही "फ्रॉड" करना चाहते होंगे शायद । वे ऐसा सोच सकते हैं । गैर जरूरी टिप्पणी भी कर सकते हैं । आखिर उन पर कोई नियम, कानून थोड़ी ना लागू होता है । वे तो देश, संविधान सबसे ऊपर हैं जी ।
अब देखिये जी कि हम भी कागज की नाव से कहां कहां की यात्रा कर आये हैं जी । अब डर लग रहा है कि कहीं डूब ना जायें जी इसलिए अच्छा है कि अब इस यात्रा को यहीं विराम दे देते हैं जी ।
पढने और कमेंट करने के लिए बहुत बहुत धन्यावाद है जी ।
श्री हरि
25.11.22
Haaya meer
25-Nov-2022 07:38 PM
Amazing
Reply
Hari Shanker Goyal "Hari"
26-Nov-2022 06:32 AM
धन्यवाद जी
Reply
Sachin dev
25-Nov-2022 03:55 PM
Nice
Reply
Hari Shanker Goyal "Hari"
26-Nov-2022 06:32 AM
धन्यवाद जी
Reply
Gunjan Kamal
25-Nov-2022 01:36 PM
👏👌🙏🏻
Reply
Hari Shanker Goyal "Hari"
26-Nov-2022 06:32 AM
💐💐🙏🙏
Reply